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गजल
Published : April 11, 2014 | Author : दिपेन्द्र "अश्रुमाली" | Unrated |
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नरोकेर नछेकेर छेकियो समय ॥
जीवनमृत्यु दुवैमा देखियो समय ॥
रोई कराई चिच्याई टार्दैन टारेर,
जन्ममा नै निधारमा लेखियो समय ॥
रहर हैन जन्म मरण पनि त्यस्तै,
सप्ना अपुरो बुढ्यौली टेकियो समय ॥
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गजल
Published : February 18, 2014 | Author : दिपेन्द्र "अश्रुमाली" | Unrated |
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पिरतिमा तट्पिएर, टोलाउँनुको मजा बेग्लै ।
दु:खाइमा अश्रु धारा, बगाउँनुको मजा बेग्लै ।।
सुरुवातमा पिरतिको, मुना हुँदै गर्दा खेरी ।
रिसाएको प्रेमिलाई,फकाउँनुको मजा बेग्कै ।।
दाउरा घाँस, गाई गोठाला, जादा सबै मिली ।
जेठा दाइले बाँसुरि, बजाउँनुको मजा बेग्लै ।।
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धेरै वर्ष अगाडि
मैले पढेको इतिहासमा
एकजना मान्छे हराएको थियो
सुन्छु पृथ्वीमा फैलिएको भाषा उसको रे
पृथ्वीमा लेखिन्दै गरेको लिपि पनि उसको रे
उसको संस्कृति फैलिएर |
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