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गजल
Published : May 08, 2014 | Author : बज्र कुमार राई | Rating :     |
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जिब्रो होइन मुखभित्र छुरा छ की क्या हो ।
बोलि पिच्छे मान्छे मार्ने कुरा छ कि क्या हो ।
हिजोका हात्ती हजुर ! आज पिलन्धरे किन !
शरीरमा अन्न हैन सुरैसुरा छ कि क्या हो ।
अनुहारमा ग्रहण छ खुब आत्तिनु पनि भा'छ
घर बाहिरको पेटमा पनि भुरा छ कि क्या हो !
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गजल
Published : March 26, 2014 | Author : बज्र कुमार राई | Rating :     |
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बढ्दैछन् त्यो शहरमा दास खाने मान्छेहरु!
अघाएनन् कहिल्यै ति लाश खाने मान्छेहरु!
खुकुरी धार लगाएर आउँदैछु म सीमानामा
पख मेरो नक्सा अनि इतिहास खाने मान्छेहरु !
यो ढुङ्गा-माटो, प्रकृति तिम्रै मात्र कसरी भो ?
जवाफ देउ ए! मेरो बसोबास खाने मान्छेहरु !
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नयाँ अबतरण
Published : October 12, 2010 | Author : बज्र कुमार राई | Rating :     |
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घाम झुल्किएर
रगतको दहसम्म आइपुग्दा
तातो बालुवाले छोप्छु भनेर
समयको किरण
केही जवान भाले-पोथीहरूले
प्रेमको सुकोमल स्पर्समा
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नरोकेर नछेकेर छेकियो समय ॥
जीवनमृत्यु दुवैमा देखियो समय ॥
रोई कराई चिच्याई टार्दैन टारेर,
जन्ममा नै निधारमा लेखियो समय ॥
रहर हैन जन्म मरण पनि त्यस्तै,
सप्ना अपुरो बुढ्यौली टेकियो समय ॥ |
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