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अस्तित्वबोध
Published : December 28, 2010 | Author : रामकृष्ण सुनुवार 'आँकाला' | Unrated |
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खै ! अस्तित्व महागो छ भन्छन्
म त अस्तित्वहिन मान्छे
मलाई अस्तित्वको महत्व थाहा नभएरै होला
सोह्र कौंडीहरूमा
तियाँ, चोका, पञ्जा र छक्काहरूसंगै
भोक, प्यास, निद्रा बिर्सेर
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आरू बखडाको बोट
Published : October 23, 2010 | Author : रामकृष्ण सुनुवार 'आँकाला' | Unrated |
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आरू बखडाको बोट जिन्दगी भएर उभिँदा
हावाका झोंकाहरूले ढलफल पारी दिन्छन्
वैंसमा सेताम्मे फूलेका फूलहरू
भमराहरूले खोर्सन नभ्याउँदै
धर्तीमा हिउँ झैं बिलाई दिन्छन्,
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एक पक्ष निदाउँदा
Published : January 28, 2010 | Author : रामकृष्ण सुनुवार 'आँकाला' | Unrated |
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स्वप्नमा आकाशको अर्ध चन्द्रमा
ग्वार्लम्मै धर्तीतिर घुँईकिँदा
चुक घोप्टिए झैं अँधेरी रातले
मस्त निद्रामा आलिङ्गन गर्यो
मलाई ऐंठन परेछ क्यारे !
एक्कासी म भौंतारिएर बकबकाउन थालेछु
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सिपाहीको सपना
Published : December 08, 2009 | Author : रामकृष्ण सुनुवार 'आँकाला' | Rating :     |
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उसलाई विश्वास नै भएन सिपाहीमा सफलतापूर्वक नाम दर्ता भएकोमा । मात्र सम्झना छ, चार-पाँच बजेतिरको झिसमिसे उज्यालोमा धरान क्याम्पको मूल ढोकाभित्र घुसेपछि सिपाहीहरूको जत्थाले हुलका हुल नवजवानहरू, उस्तै उस्तै उमेरकाहरूलाई विभिन्न होडबाजीमा भिडाएको । उसलाई अत्तोपत्तो नै भएन, कुनै पनि कुराको जानकारी ठप्प छ......
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हाँस्दा राम्री देखे पनि, मन भित्र खुनी रैछौ
जुनी जुनीको वाचा कसम, दुई दिनमै भूली गईछौ
यस्तै रैछ संसार
एउटा हाँस्दा अर्को रुने, मायाको कारोबार |
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