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भो मसंग अचेल नदीको कुरै नगर
बाँच्न सिक्दैछु म यहाँ भई बगर,
पानी जस्तै यो जिन्दगी सलल कहाँ बग्छ ?
मान्छे भई जिउँदा घुम्ती काट्नु पर्दो रैछ
आँशु-हाँसो संगै बोकी घुम्ती पार गर्छु
मनै घोटी मनको घाउ आफै निको पार्छु, |
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