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Published : June 22, 2010 |
Author : सचित राई
Category : Poetry / कविता | Views
: 1223 | Rating :     
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एकबारको रै’छ
उन्मत्त बैंस लिएर
कति झरेँ ओरालीमा
कति चढेँ उकालीमा
सिम्माको झुम्के-बुलाकी
नछोऊँ भन्दै थिएँ
छोइदिइहालेँ
बैंस चढेको बेला
बैंस आएकैसँग
एकखेप बिर्सिदिएँ
आफू-आफूहरूलाई
समागमको राजनीति
अलिकति खुकुलो
अलिकति पारदर्शी
केही गोप्य
केही रहस्य
जिन्दगी त समर्पण पो रहेछ । |
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